सिनेमा प्रतिस्‍मृति - प्रकाश मेहरा ने दिया इंडस्ट्री को एंग्री यंगमैन

दीप भट्ट

फिल्म निर्देशक प्रकाश मेहरा के साथ बिताई उस शाम की याद आती है तो उनकी बेबसी और बेचारगी जैसे आंखों के सामने एकदम जीवंत हो उठती है। प्रकाश लंबे समय से मधुमेह से पीड़ित थे और पारिवारिक कारणों से दुखी भी। उस शाम जब वह इंटरव्यू के लिए जुहू स्थित किंग होटल के पास बने अपने मुमित डबिंग थिएटर के दालान में बैठे तो बेहद व्यथित मुद्रा में थे। मैंने इंटरव्यू रिकार्ड करने के लिए अपना टेप रिकार्डर निकाला तो उन्होंने पूछा कि किस इलाके के रहने वाले हैं। मैंने उन्हें बताया कि मैं नैनीताल का रहने वाला हूं तो उनके मुंह से बरबस निकला कि वह नैनीताल, अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ का चप्पा-चप्पा घूम चुके हैं। तभी वह जूते के फीते बांधने के लिए नीचे झुके तो घुटनों में दर्द के कारण बार-बार कोशिश करने के बावजूद फीते नहीं बांध सके।
मेरा मन किया कि मैं ही फीते बांध दूं पर फिर कुछ सोचकर रुक गया। तब फीते न बांधा पाने की बेबसी और पीड़ा में उन्होंने जो कहा था वह मुझे आज भी शब्दश: याद है। उन्होंने कहा था मैं फिल्म मेकिंग से इश्क करता हूं पर पिछले 14 साल से फिल्म नहीं बना पा रहा हूं। डायबिटीज ने इस कदर परेशान कर दिया है कि डाक्टर रोज सुबह-शाम वाकिंग के लिए कहता है। डाक्टर की सलाह पर मैं रोज शाम सात बजे यहां घूमते हुए पहुंच जाता हूं। वह प्रकाश मेहरा जो कभी अभिताभ जैसे सुपर स्टार को सुबह नौ बजे शूटिंग के लिए यहां आने को कह दे तो वह ठीक नौ पर यहां हाजिर हो जाता था। आज अपनी मरजी का मालिक नहीं रह गया है। डाक्टर कहता है तो घूमने आना पड़ता है। मन न भी हो तो आना पड़ता है। फिल्म बनाना चाहूं तो पैसे नहीं मिलते। भरत शाह सबको पैसे दे रहे हैं पर जब मैं उनसे फिल्म के लिए पैसे की बात करता हूं तो वह मुझसे पूछते हैं हीरो शाहरुख है या नहीं। हीरोइन ऐश्वर्या राय को लो। मेरी समझ में नहीं आता कि एक डायरेक्टर अपने कथानक के अनुरूप अपनी मरजी से हीरो-हीरोइन का चुनाव भी नहीं कर सकता। आखिर उसकी फिल्म की कहानी की जरूरत के हिसाब से ही तो हीरो-हीरोइन का चुनाव किया जाना चाहिए। लेकिन अब बालीवुड में ऐसा नहीं हो रहा। बालीवुड में अब पहले सेटअप बनता है फिर फिल्म। प्रकाश ने बताया था कि वह भरत शाह के पास अपने बेहतरीन ख्वाब 'आस्कर' के निर्माण के लिए पैसे मांगने गए थे। जब उनके सामने प्रस्ताव रखा तो उन्होंने हीरो-हीरोइन के बारे में पूछा था। तब मैंने उनसे कहा था माफ कीजिए मैं फिल्में बनाता हूं सेटअप नहीं। मुझमें इतना माद्दा है कि मैं आपसे तीन करोड़ लेकर पर्दे पर उस फिल्म को इतने भव्य रूप में पेश कर सकता हूं कि वही फिल्म आपको 30 करोड़ की नजर आएगी पर भरत शाह ने पैसे नहीं देने थे सो नहीं दिए। उस शाम प्रकाश मेहरा पिए हुए थे और पूरे मूड में थे इसलिए बातों का सिलसिला आगे बढ़ता चला गया। उन्होंने दिल खोलकर बातें की और कई ऐसे संस्मरण भी सुनाए जो शायद पाठकों के लिए नए हों। आज प्रकाश मेहरा हमारे बीच नहीं हैं तो उनकी वो बातें और वो संस्मरण याद आ रहे हैं। प्रकाश मेहरा पर बात चल रही है तो इसका उल्लेख करना भी जरूरी है कि फिल्म इंडस्ट्री को एंग्री यंग मैन यानि अमिताभ बच्चन उन्होंने ही दिया। अभिताभ बच्चन का फिल्मी कैरियर जब लगभग खत्म हो चुका था और वो इंडस्ट्री छोड़ने की तैयारी में थे तभी जंजीर जैसी फिल्म में उन्हें हीरो बनाकर उन्होंने अमिताभ को नया जीवन दिया। फिर तो अमिताभ के साथ उन्होंने लंबी पारी खेली। उनके निर्देशन में बनी अमिताभ बच्चन की लावारिस हो या मुकद्र का सिकंदर या शराबी या नमक हलाल सभी सुपर हिट फिल्में रहीं। यह भी बड़ी सच्चाई थी कि प्रकाश मेहरा का अमिताभ बच्चन के बगैर कोई व्यक्तित्व नहीं था पर अमिताभ बच्चन ने प्रकाश मेहरा के बगैर भी अपने आपको साबित किया और बखूबी साबित किया। पेश है प्रकाश मेहरा के साथ उस शाम हुई बातचीत:-
प्रकाश जी के साथ बातों का सिलसिला शुरू हो और जंजीर का जिक्र न छिड़े यह कैसे मुमकिन हो सकता है। जब मैंने उनसे जंजीर की यादें बांटने को कहा तो उन्होंने बताया कि जंजीर की स्क्रिप्ट लेकर सलीम-जावेद कई निर्माता-निर्देशकों के यहां चक्कर काट रहे थे। मैं तब तक 'हसीना मान जाएगी' फिल्म का निर्माण कर चुका था। उन्होंने मेरा नाम सुना था तो वह स्क्रिप्ट लेकर मेरे पास पहुंचे। मैंने स्क्रिप्ट पढ़ी तो मुझे लगा कि कहानी में दम है। मैंने उन्हें मश्विरा दिया कि फिल्म के लिए किसी अच्छे स्टार को लिया जाए पर सलीम-जावेद अपनी स्क्रिप्ट को लेकर इतना उत्साहित थे कि किसी की कोई राय सुनने को तैयार ही नहीं थे। बोले स्टार क्या होता है। स्टार तो स्क्रिप्ट होती है। हमारी स्क्रिप्ट ऐसी है कि स्टार खुद-ब-खुद हमारे पीछे दौड़े चले जाएंगे। मैंने उन्हें हवा में उड़ते देखकर कहा फिर आपकी मरजी। खैर दोनों चले गए। एक दिन मैं घर पर ही था कि अचानक फोन की घंटी बजी। रिसीवर हाथ में उठाया तो उधर से सलीम-जावेद की आवाज सुनाई पड़ी। बोले- देव साहब के यहां चलें आइए। हम यहीं बैठे हैं। मैंने कहा आपको स्टारों की जरूरत कब से पड़ गयी आपकी तो स्क्रिप्ट ही स्टार है। खैर मैं नवकेतन पहुंचा। देव साहब ने राय दी कि स्क्रिप्ट ठीक है पर इसमें तीन-चार रोमांटिक गाने और डालिए। मैंने साफ मना कर दिया। कहा हमारी कहानी के हिसाब से गानों की जरूरत नहीं है। खैर बात नहीं बननी थी नहीं बनी। बात आई-गई हो गई।
काफी समय बाद सलीम-जावेद का फिर फोन आया- बोले प्रकाश जी राजकुमार साहब के यहां बैठे हैं। राजसाहब कहानी सुनने के लिए तैयार हैं। आप आ जाइए। मैं राज साहब के वली सीफेस वाले घर गया। पीने-पिलाने का दौर चला। राज साहब ने कहानी सुनी तो उनकी आंखों में चमक आ गई। बोले यार जानी, ये कोई कहानी हुई जिसमें कोई हीरो किसी हीरोइन के पीछे गाना गाते हुए नहीं दौड़ता। बोले- यार जानी प्रकाश ये कहानी तो हमारी अपनी कहानी है। हम माहीम में सब इंस्पेक्टर हुआ करते थे। ये फिल्म हमारे हाथ से जाने मत दो। मैं बड़ा खुश हो गया। मुझे लगा फिल्म के लिए इतना बड़ा हीरो मिल रहा है तो फिल्म हिट है लेकिन तभी राज साहब ने पलटा खाया। वह बोले यार जानी प्रकाश ये फिल्म हमारे हाथ से जाने मत दो पर हमें इतना को-आपरेट करो कि इसकी शूटिंग मुंबई की जगह मद्रास में करो। मेरा माथा ठनका। मैंने उनसे कहा कि मेरी कहानी के हिसाब से लोकेशन मुंबई ठीक बैठती है। मद्रास में काले-काले लोग और फिर कहानी के हिसाब से मद्रास किसी सूरत में ठीक लोकेशन नहीं है। मद्रास में फिल्म का खर्चा भी बढ़ जाएगा लेकिन राज साहब वही रट लगाए रहे। मैं वही बात दोहराता रहा। फिर बोले यार जानी प्रकाश हमें को-आपरेट करो। ये फिल्म हमारे हाथ से मत जाने दो। ऐसा क्यों इसकी हीरोइन भादुड़ी की बजाए मुमताज को बनाओ। खैर मैं वहां से चला आया। लगा राज साहब का काम करना मुश्किल है। इसी उधेड़बुन में था कि एक दिन प्राण साहब का फोन आया कि प्रकाश 'बांबे टु गोआ' देख लो। हरिवंश राय बच्चन का बेटा अमिताभ इसमें काम कर रहा है। पूरी फिल्म मत देखना। बस अमिताभ और शत्राुघन सिन्हा के फाइट सीन देख लो। मुझे इस लड़के में कांफीडेंस नजर आता है। जंजीर के हीरो के लिए यह एकदम फिट है। मैं फिल्म देखने गया। पूरी फिल्म देख डाली। मुझे हीरो मिल गया। उसके बाद की कहानी दुनियां जानती है।
बातचीत के दौरान मेरी नजर डबिंग थिएटर के कमरे में लगी प्रकाश मेहरा और राजकपूर की बड़ी सी ब्लैक एण्ड व्हाइट तस्वीर की तरफ गई। मैंने उनसे उस तस्वीर के बारे में पूछा तो प्रकाश जी ने बताया कि जंजीर की शूटिंग आरके स्टूडियो में की थी।
राजसाहब अक्सर शूटिंग देखने आते थे। राज साहब ने जंजीर का एक सीन सुना था टेप रिकार्डर पर। सीन था कुछ गुंडे अमिताभ को मारने का प्रस्ताव लेकर प्राण के पास आते हैं। यह जानने पर कि जिसे मारने का प्रस्ताव लेकर वह आए हैं वह उनका जिगरी दोस्त है। तो प्राण गुंडों से कहते हैं- इस मुल्क में शेर वैसे भी बहुत कम हो गए हैं। सरकार ने शेरों को मारने पर मूमानियत लगा दी है। सीन सुनने के बाद राज साहब ने मुझे बुलाया। बोले तेरी यह बहुत बड़ी फिल्म है। इसकी गोल्डन जुबली पर मुझे बुलाना मत भूलना। जंजीर की गोल्डन जुबली की पार्टी पर वह आए तो यह तस्वीर उनके साथ खींची थी।
जंजीर के बाद अमिताभ और प्रकाश मेहरा प्यार की ऐसी जंजीर में बंधो कि एक के बाद एक हिट फिल्मों का सिलसिला चल पड़ा। प्यार की यह जंजीर जादूगर के बाद ही टूटी। उस शाम अमिताभ की बात चली तो प्रकाश जी ने बताया कि जंजीर के सेट पर आने से पहले अमिताभ उस दिन के दृश्यों के बारे में इतनी बहस करता था कि पूछो मत। उसका समर्पण और होमवर्क देखने लायक था। फोन पर पूछता रहता था क्या यह सीन ऐसे करें तो और अच्छा नहीं बन जाएगा। जंजीर की कामयाबी में अमिताभ की मेहनत, लगन, समर्पण का बहुत बड़ा हाथ है। उसका जैसा अनुशासित एक्टर मैंने इंडस्ट्री में दूसरा नहीं देखा। आज भी मैं उससे कह दूं कि अमित तुम्हें कल सुबह 9 बजे सुमित

डबिंग थिएटर पहुंचना है तो वह ठीक 9 बजे हाजिर हो जाएगा। पर आज यह समर्पण किसी हीरो में नजर नहीं आता। प्रकाश जी यह कहते हुए फिर उदास हो गए थे। बाद के दिनों में ये उदासी और बेबसी बढ़ती चली गई और इसी उदासी के आलम में चल बसे। वह बहुत बड़े क्राफ्टमैन नहीं थे। छोटे से कस्बे बिजनौर से मायानगरी में एक कामयाब फिल्म निर्देशक बनने का ख्वाब लेकर गए थे। उनके इस ख्वाब को अमिताभ बच्चन जैसे महानायक ने साकार कर दिया। अमिताभ को महानायक बनाने में उनका ही योगदान था। जब-जब अमिताभ बच्चन की महानायकत्व देने वाली फिल्मों की चर्चा होगी तब-तब प्रकाश मेहरा का नाम भी चर्चा में जरूर आएगा। अमिताभ के मेल से ही उनका निर्देशकीय कौशल सामने आता था। चाहे जंजीर हो या          लावारिस या मुकद्दर का सिकंदर या शराबी सभी फिल्मों में अभिनय और निर्देशकीय कौशल देखने लायक था। अमिताभ बच्चन प्रकाश मेहरा की फिल्मों से हटे तो जैसे प्रकाश का पराभव शुरू हो गया। राजबब्बर को लेकर उन्होंने दलाल बनाई जो बुरी तरह पिटी। फिर राजकुमार के बड़े बेटे पुरु राजकुमार को लेकर बाल ब्रह्मचारी का निर्माण किया। यह फिल्म भी औंधे मुंह गिरी। प्रकाश मेहरा के पूरे निर्देशकीय दौर की समीक्षा करें तो अमिताभ बच्चन का उनके निर्देशकीय कौशल को निखारने में बड़ा योगदान था। अमिताभ के बगैर प्रकाश का कोई व्यक्तित्व नहीं था पर अमिताभ बच्चन का प्रकाश  मेहरा के बगैर भी एक व्यक्तित्व है। यह प्रकाश मेहरा की सबसे बड़ी कमजोरी थी।

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