तरंग :-हिन्दी सेवी कैलाशचन्द्र पन्त सम्मानित । 'मैं नदी की सोचता हूं' और 'अमलतास' का लोकार्पण

श्री पंत का व्यक्तित्व लोक संग्रही- पद्मश्री प्रो. रमेशचन्द्र साह
भोपाल। ''श्री कैलाशचन्द्र पंत का व्यक्तित्व लोक संग्रही व्यक्तित्व है। उनके निजी जीवन और लोक जीवन में कोई भिन्नता नहीं है। उनमें सामाजिकता और दूसरों का विश्वास अर्जित करने की अद्भुत क्षमता है''- प्रख्यात साहित्यकार पद्मश्री प्रो. रमेशचन्द्र शाह ने इन शब्दों के साथ हिन्दी-सेवी, साहित्यकार, पत्राकार एवं समाज सेवी श्री कैलाशचन्द्र पंत को उनके 74वें जन्म दिवस पर भोपाल के मानस भवन में सम्पन्न आत्मीय सम्मान समारोह की अध्यक्षता करते हुए उनके दीर्घजीवी और यशस्वी होने की कामना की। इस समारोह को भोपाल की साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा मिल-जुलकर आयोजित किया गया था। इस हेतु तुलसी मानस प्रतिष्ठान के कार्याध्यक्ष श्री रमाकांत दुबे की अध्यक्षता में एक आयोजन समिति गठित की गई थी। पंडितों के समूह द्वारा स्वस्ति वाचन और श्रीमती भगवती पंत द्वारा देवी स्तोत्रा के पाठ के साथ सम्पन्न यह पारंपरिक समारोह 'प्रसन्नता के प्रकटीकरण के उत्सव' के रूप में आयोजित हुआ।
उल्लेखनीय है कि श्री पंत को द्वितीय हिन्दी भाषा कुंभ, बेंगलूर में उनकी हिन्दी सेवाओं को अभिनंदित करते हुए परम विशिष्ट हिन्दी सम्मान तथा नाथ द्वारा (राजस्थान) की साहित्य-मंडल संस्था द्वारा हिन्दी भूषण सम्मान से विभूषित किया गया है। पिछले फरवरी महीने में उत्तार प्रदेश सरकार के हिन्दी संस्थान का एक लाख रूपये का प्रतिष्ठित सम्मान भी उन्हें मिला है। इसके अलावा अखिल भारतीय प्रौढ़ शिक्षा संघ, नई दिल्ली ने उनको नेहरू लिटरेसी अवार्ड की घोषणा की है। समारोह में शताधिक संस्थाओं और व्यक्तियों ने उन्हें सम्मानित कर उनकी दीर्घायु और यशस्वी होने की कामना की। सम्मान करने वाले व्यक्तियों में स्व. श्री नरेश मेहता की पत्नी श्रीमती महिमा मेहता, मध्य प्रदेश विधानसभा के प्रमुख सचिव डॉ. आनंद पयासी, न्यायमूर्ति श्री आर.डी. शुक्ला, पूर्व मंत्राी श्री महेश जोशी, वरिष्ठ कथाकार श्रीमती मालती जोशी एवं श्री पंत के बाल सखा श्री प्रेमचंद जैन भी शामिल थे। इस अवसर पर श्री पंत को अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन की मध्य प्रदेश शाखा द्वारा संस्कृति भूषण सम्मान एवं उनकी सहधर्मिणी श्रीमती किरण पंत को साधना सहचरी सम्मान से विभूषित किया गया।
प्रो. शाह ने आगे कहा कि पत्राकारिता और साहित्यिक पत्राकारिता पंत जी का 50 साल पहले का शौक है। हिन्दी की राष्ट्रीय और वैश्विक शक्तियों की उन्हें अच्छी पहचान है। विपरीत दृष्टिकोण वालों के प्रति भी उदारता इनमें रही है। दरअसल पंत जी के व्यक्तित्व में कई गुणों का विरल संयोग है। युवा पीढ़ी को साथ लेकर संकल्पों को कैसे संभव बनाया जा सकता है, यह श्री पंत ने अपने कृतित्य के माध्यम से बताया है।
प्रारंभ में आयोजन समिति के संयोजक श्री रमाकांत दुबे और माधवराव सप्रे समाचार पत्रा संग्रहालय के संस्थापक निदेशक श्री विजयदत्ता श्रीधर ने क्रमश: स्वागत भाषण और प्रस्तावना वक्तव्य दिया। श्री पंत के बहुआयामी समग्र व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए प्रो. रमेश दवे ने कहा कि वरिष्ठ साहित्यकार श्री कैलाशचन्द्र पंत ने भाषा के जरिये अपने व्यक्तित्व का निर्माण किया है।
श्री पंत की पत्राकारिता की मूलभूत विशेषताओं को रेखांकित करते हुए वरिष्ठ पत्राकार श्री राजेन्द्र शर्मा ने कहा कि विभिन्न विषयों पर श्री पंत जितनी प्रखरता के साथ लिखते हैं- वैसा कम ही लोग लिख पाते हैं।
श्री कैलाशचन्द्र पंत ने संस्थाओं और व्यक्तियों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए कहा- ''मेरे गुरू प्रो. चटर्जी की इच्छा थी कि मैं समाज सेवा के क्षेत्रा को न चुनूं, क्योंकि उनका मानना था कि सामाजिक कार्य एक धन्यवाद मुक्त कर्म है। मैं गुरू आज्ञा की अवहेलना का अपराधी बना, लेकिन समाज सेवा के काम को नहीं छोड़ा वे जिसे नहीं चाहते थे, उसी समाज सेवा को मैंने अपना कैरियर बनाया। यह सच है कि सामाजिक जीवन में जो धन्यवाद पाने की अपेक्षा से आयेगा- उसके लिए तो यह क्षेत्रा ''थैंक लेस जॉब'' तो साबित होना ही है। इसके विपरीत यदि समाज सेवा क्षेत्रा के काम को निष्काम भाव से करेंगे, तो आनंद आयेगा, सुख मिलेगा। अपने जीवन के ध्येय की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा- ''मैं समाज में ऐसे समूह तैयार करने के लिए कृत संकल्प हूं, जो अन्याय और भ्रष्टाचार का प्रतिरोध कर सकें। हर काम के लिए आखिर हम सरकार की ओर क्यों देखें। मेरा विश्वास है कि सामाजिक जीवन में अच्छाई उभारी जाए, तो बुराई अपने आप मिट जाएगी।   ''प्रस्तुति- युगेश शर्मा

'मैं नदी की सोचता हूं' और 'अमलतास' का लोकार्पण

गाजियाबाद। सुप्रसिध्द ग़ज़लकार और हाइकुकार कमलेश भट्ट कमल  की 50वीं वर्षगांठ पर उनकी दो महत्वपूर्ण पुस्तकें एक साथ लोकर्पित हुई। प्रकाशन संस्थान, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह 'मैं नदी की सोचता हूं' तथा हाइकु संग्रह 'अमलतास' का लोकार्पण गाजियाबाद के गान्धर्व संगीत महाविद्यालय में आयोजित एक साहित्यिक समारोह में गिरिराज किशोर, से.रा. यात्री व डॉ. अंजलि देवधर द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ अनुराधा भट्ट की सरस्वती वन्दना तथा ग़ज़ल प्रस्तुति एवम् जया बैनर्जी की सांगीतिक प्रस्तुतियों के साथ हुआ।
समारोह के मुख्य अतिथि सुप्रसिध्द कथाकार गिरिराज किशोर ने अपने संबोधन में कहा कि यदि हिन्दी में हम ग़ज़ल लिख सकते हैं तो जरूर लिखें, क्योंकि इसमें संवेदना को तीव्रता के साथ अभिव्यक्त करने की अपूर्व संभावनाएं हैं। कमलेश जी की ग़ज़लों में यह तीव्रता और संभावना दोनों मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि हाइकु की तीन पंक्तियों में यथार्थ को व्यक्त कर देना बहुत कठिन कार्य है। अज्ञेय ने कभी कहा था कि भारतीय जापानियों से बेहतर हाइकु लिख सकते हैं और भट्ट जी ने इसे प्रमाणित करके दिखा दिया है।
समारोह के अध्यक्ष सुप्रसिध्द कथाकार से.रा. यात्री ने कहा कि कमलेश जी सच्चे अर्थों में एक प्रसन्न व्यक्ति हैं। उनकी काव्य-सम्मत चिन्ताएं जनजीवन से गहराई के साथ जुड़ी हुई हैं। इस अवसर पर वरिष्ठ गीतकार डॉ. मधु भारतीय ने कमलेश भट्ट कमल की ग़ज़लों में संप्रेषणीयता की अद्भुत क्षमता का उल्लेख किया। सुप्रसिध्द गीतकार-ग़ज़लकार डॉ. कुंअर बेचैन ने कमलेश जी की ग़ज़लों को पूरे समाज से जुड़ा हुआ बताते हुए उनकी हाइकु साधना को इस विधा के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण बताया।
सुप्रसिध्द कवि डॉ. अमरनाथ अमर ने कमलेश जी की रचनाओं को स्व से निकालकर सर्व तक जाती मानवीय संवेदनाओं का संकलन बताया। उन्होंने कहा कि उनकी संवेदना पंछियों, नदियों और प्रकृति से निकलकर मनुष्य तक पहुंचती है तथा उनकी ग़ज़लों में बुलन्दी पर जाने की इच्छाशक्ति तथा सामाजिक संघर्ष, चिन्तन और उसकी चिन्ता को अभिव्यक्ति मिली है। बाल साहित्यकार कृष्ण शलभ (सहारनपुर) ने कमल जी के व्यक्तित्व को व्यष्टि से समष्टि की ओर जाता हुआ बताया। समारोह में जिन अन्य लोगों ने विचार व्यक्त किए उनमें सुप्रसिध्द चित्राकार डॉ. लाल रत्नाकर, वरिष्ठ पत्राकार कुलदीप तलवार, साहित्यकार बी.एल. गौड़, डॉ. सुरेन्द्र सिंघल, डॉ. सरिता शर्मा, डॉ. अंजलि देवधर तथा प्रकाशक हरीशचन्द्र शर्मा आदि शामिल थे।
समारोह में गिरिराज किशोर, से.रा. यात्री, अंजलि देवधर तथा हरीशचन्द्र शर्मा को शॉल ओढ़ाकर सम्मानित भी किया गया। इस अवसर पर ओम प्रकाश यती, डॉ. अंजू सुमन, अंजु जैन, आर.पी. कौशल, अनिल कुमार शर्मा, के.सी. शर्मा, उमाश्री, कुसुम भट्ट, अलका यादव, डॉ. तारा गुप्ता, तरुण गोयल, विशाख भट्ट, आस्था भट्ट सहित अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे। संचालन डॉ. जगदीश व्योम तथा वेद प्रकाश शर्मा वेद ने किया 'हाइकु दर्पण तथा 'गीताभ' की इस संयुक्त प्रस्तुति में अतिथियों का आभार डॉ. योगेन्द्र दत्ता शर्मा ने व्यक्त किया।                      प्रस्तुति- प्रत्यूष यादव

कोई टिप्पणी नहीं: