मंथन : पाठकों के पत्र


'आधरशिला' की लंबी विकास यात्रा की साक्षी
'आधारशिला' के रजत जयंती वर्ष का पहला अंक। एक विरल आंतरिक तृप्ति से गुजरी। प्राय: सभी रचनाएं एवं स्तंभ विशेषकर 'देशांतर' के अन्तर्गत चेखव पर लिखा संस्मरण अभिभूत कर गया। इस सार्थक संचयन का संपूर्ण श्रेय आपको। यूं भी 'आधारशिला' की लंबी विकास यात्रा की साक्षी भी हूं, कायल भी। 'पुनर्पाठ' जैसे स्तंभ अत्यन्त उपयोगी हैं। आपके संपादकीय की साफगोई और विनम्रता प्रभावित करती है।
डॉ. सूर्यबाला, बी-504, रूनवाल सेंटर, देवनार (चेंबूर) मुंबई- 88

कवि नरेश सक्सेना का साक्षात्कार महत्वपूर्ण
'आधारशिला' काफी समृध्द पत्रिका है। सभी विषयों को आप इसमें समाहित कर रहे हैं। विशेषकर आपके संपादकीय काफी विचारोत्तोजक होते हैं। पढ़कर कई बार उन मुद्दों से सहमत होने का मन करता है। वरिष्ठ कवि रमेश चन्द्र शाह की डायरी तो इस पत्रिका का आकर्षण ही है। अनेक नई और भूली बिसरी बातें इसमें मिलती रही हैं। काफ्क़ा की जीवन भी बहुत महत्वपूर्ण है। आप कला पर भी प्रत्येक अंक में महत्वपूर्ण दे रहे हैं। खासकर नए, युवा और उभरते हुए चित्राकारों पर जो वास्तव में स्तुत्य है। जन.-फरवरी अंक में मेरे मित्र और वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना का साक्षात्कार अच्छा है। वे ईमानदार कवि हैं।
मनमोहन सरल, 4-402, जगत-विद्या, बान्द्रा- कुर्ला संकुल बान्द्रा पूर्व, मुंबई-51

पच्चीस वर्षों का जीवंत संघर्ष
पत्रिका 25 वर्षों से देश ही नहीं विश्व के कई देशों तक हिन्दी और हिन्दी साहित्य की अनुगूंज पहुंचा रही है। यह हमारे व देश के लिए आत्मगौरव की बात है कि हिन्दी को राष्ट्रसंघ की भाषा बनाने की मुहिम में आप और पत्रिका दोनों लगे हैं। पिछले अंकों की तरह ही मई अंक भी अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति लिए पाठकों तक पहुंचा। इस अंक में पुनर्पाठ में विष्णु प्रभाकर की कहानी 'मेरा वतन' आज के संदर्भों में देश व इसके राजनीतिक नियंताओं को समझने-जानने के लिए महत्वपूर्ण दृष्टान्त है। इसी क्रम में कथाकार बल्लभ डोभल की कहानी भी इस व्यवस्था की पोल खोलती है। पंकज बिष्ट अपने इंटरव्यू में महत्वपूर्ण बातें रखते हैं। प्रवासी कलम में सुधा ओम धींगड़ा (अमेरिका) की कहानी मंदी के इस दौर की मानसिकता और सत्य को उजागर करती है। इस विषय पर उन्होंने अच्छी कहानी लिखी है। जो सामयिक होने के कारण ध्यान खींचती है। रमेश चन्द्र शाह की डायरी, हरिपाल त्यागी, सुषमा प्रियदर्शिनी व सिने कलाकार ललित तिवारी की कविताएं अच्छी हैं। कला दीर्घा व सिनेमा कालम में भी आप अच्छी सामग्री दे रहे हैं, जो दूसरी पत्रिकाओं में नहीं होती है।
अभिषेक रंजन, साल्ट लेक स्ट्रीट कोलकाता (पं.बंगाल)

'अन्ना' मर्मस्पर्शी कहानी
पत्रिका का पहला रजत जयंती अंक। अब तक इस अंक को जितना पढ़ पाया, मुझे सामग्री पठनीय और उपयोगी लगी। विशेषकर पुर्नपाठ के अन्तर्गत पानू खोलिया की कहानी 'अन्ना' बेहद मर्मस्पर्शी है। नरेश सक्सेना की कविता प्रभावी है। सिनेमा में शर्मिला टैगोर के वक्तव्य सामयिक और विचारणीय हैं।
सी. भास्कर राव, जमशेदपुर (झारखंड)

उत्ताराखण्ड से प्रकाशित साहित्य की एकमात्र महत्वपूर्ण पत्रिका
'आधारशिला' का मई अंक पढ़ा। पत्रिका ने साहित्य जगत में जो अपनी विशिष्ट पहचान कायम की है, वह आपके 25 साल के कठोर श्रम और निष्ठा का ही परिणाम है। उत्ताराखण्ड से प्रकाशित यह एकमात्रा पत्रिाका है जो साहित्यिक सरोकारों से इतने गहरे जुड़ी है। विज्ञान व्रत के चित्रा, हरिपाल त्यागी की कविताएं और शक्ति सामंत के संस्मरण मई अंक की खासियत हैं। आपने 'आधारशिला' के रूप में साहित्यिक बिरादरी को मुखर होने के लिए जो मंच प्रदान किया है, वह सचमुच पत्रिाका से बढ़कर एक रचनात्मक अभियान ही है, जिसकी सफलता का सम्पूर्ण श्रेय आपकी अंतरंगता, संपर्कों व श्रम को जाता है।
मोहन सिंह रावत, शोध अधिकारी स्टोनले कंपाउण्ड, तल्लीताल, नैनीताल- 2

संपादकीय उद्वेलित करता है
पत्रिका विविधता और गुणवत्ता से परिपूर्ण है। आपकी 'बात की बात' अंदर तक उद्वेलित करती है। आकंठ तक आनन्द आता है। रमेश चन्द्र शाह के डायरी के पन्ने, काफ्क़ा की जीवनी और सिनेमा के स्तंभ काफी प्रेरणादायक होते हैं। कहानी, कविता और साक्षात्कार महत्वपूर्ण हैं।
शिवानन्द सहयोगी, मवाना रोड, मेरठ

अच्छी सामग्री दे रही है पत्रिका
'आधारशिला' का मई अंक पढ़ा। निश्चय ही पत्रिका निरन्तर बहुत अच्छी सामग्री दे रही है। अशोक की काफ्क़ा को लेकर अनूदित की गई लेखमाला काफ्क़ा को समझने की नई दृष्टि तो देती ही है, अशोक ने जिस आत्मीयता और अंतरंग भाषा में अनुवाद किया है वह अभूतपूर्व है। इस सहजता से हिन्दी में अशोक ही अनुवाद कर सकता है।
इस अंक में दूसरी तमाम रचनाएं भी अविस्मरणीय हैं। शाह जी की डायरी की दुनिया में प्रवेश और उसे जीना भी अपने आप में बड़ा अनुभव है। पंकज बिष्ट की बातचीत को और विस्तृत होना चाहिए। मुझे लगता है कि हमारे समय को लेकर पंकज अपनी रचनाओं और 'समयांतर' के माध्यम से जो दृष्टि दे रहे हैं, उसे हिन्दी की कौन सी दूसरी पत्रिका प्रस्तुत कर पा रही है? भारतीय विचारकों की मुख्यधारा के चिंतन को शायद यह पत्रिका पहली बार इस विस्तार से प्रस्तुत कर रही है। समीक्षाएं और साहित्य क्षेत्रा की हलचलें भी उल्लेखनीय हैं। मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें। अब त्रिालोचन अंक की प्रतीक्षा है। आप हर अगले अंक में आगे बढ़ रहे हैं।
बटरोही, निदेशक महादेवी वर्मा सृजनपीठ, कुमाऊं वि.वि. रामगढ़ (नैनीताल) 

अपनी तरह की विशिष्ठ पत्रिका
पत्रिका के ताजा अंक में चर्चित लेखक विष्णु प्रभाकर और बल्लभ डोभाल की कहानियां आज की व्यवस्था पर करारी चोट करती हैं। वहीं प्रवासी भारतीय लेखिका सुधा धींगड़ा की कहानी 'एक्जिट' मौजूदा बाजार और प्रवासी भारतीयों की 'पैसा कमाऊ' संस्कृति को बेनकाब करती है। मौजूदा दौर में विश्व मंदी पर लिखी गई यह अपनी तरह की पहली कहानी है। पत्रिका में देशान्तर में छपने वाला अन्तर्राष्ट्रीय साहित्य पत्रिका को व्यापक स्वरूप देता है। 'आधारशिला' हिन्दी साहित्य, संस्कृति की अपनी तरह की एकमात्रा पत्रिका है जो पाठकों को लोक जीवन व कला से लेकर विश्व साहित्य-कला की  क्षितिज तक जोड़ती है। आपके इस साहित्यिक मिशन में हम सब साथ हैं। रजत जयन्ती वर्ष से नए तेवरों के साथ पत्रिाका हमारे बीच है।
अनामिका सिंह, टोंक रोड, जयपुर (राजस्थान) 

आज की दु:स्थितियों पर पुनर्विचार
'आधारशिला' मई 2009 का अंक मिला, आभार। आपका संपादकीय आज की दु:स्थितियों पर एक पुनर्विचार है। कहानियों में मेरा वतन (विष्णु प्रभाकर), कोढ़ खाज (बल्लभ डोभाल), एग्जिट (सुधा ओम धींगड़ा) काफी अच्छी हैं। विष्णु प्रभाकर की कहानी काफी प्रभावित करती है। पंकज बिष्ट का साक्षात्कार अच्छा है। वही प्रभा दीक्षित का स्त्री विमर्श पर आलेख खोजपूर्ण और संग्रहणीय है। हरिपाल त्यागी की कविताएं, ललित मोहन की कविताएं और बिष्ट की ग़ज़लें प्रभावित करती हैं। 'द ट्रायल' काफ्क़ा को समझने में मदद करता है। कुल मिलाकर अंक अच्छा बन पड़ा है।
कलाधर, नया टोला, पूर्णियां (बिहार)

पाठकों की बौद्धिक खुराक
'आधारशिला' निरंतर प्रगति पथ पर अग्रसर है। रजत जयन्ती पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार हो। आप देशी-विदेशी साहित्य को बिना भेदभाव के एक मंच प्रदान कर अच्छा कार्य रहे हैं। पाठकों की बौध्दिक खुराक की प्रतिपूर्ति एक ही पत्रिका से पूर्ण हो रही है। यह अंक भी पिछले अंकों की तरह अपनी श्रेष्ठता को बयान कर रहा है। पहली बार जाना कि श्री विज्ञान व्रत कवि ग़ज़लकार के अलावा एक चित्राकार भी हैं।
उषा यादव 'उषा', मंदाकिनी विहार, सहारनपुर (उ.प्र.) 

साहित्य को पाठकों तक पहुंचाने का महत्वपूर्ण कार्य
पत्रिका में रमेश चन्द्र शाह की डायरी जहां साहित्य, कला जगत का कई परतें खोलता है तो वहीं काफ्का की जीवनी साहित्य से दर्शन तक ले जाकर पाठक को उद्वेलित करती है। कहानियों में विष्णु प्रभाकर, बल्लभ डोभाल, सुधा ओंम धींगड़ा (अमेरिका) ने विशेष प्रभावित किया। आज की समाज व्यवस्था को लेकर आपका संपादकीय हर बार महत्वपूर्ण होता है। पत्रिका ने अपने पच्चीस साल की यात्रा में हिन्दी व विश्व साहित्य को पाठकों तक पहुंचाने के लिए महत्वपूर्ण काम किया है। हिन्दी को राष्ट्रसंघ की भाषा बनाने की मुहिम में भी पत्रिका शामिल है। यह महत्वपूर्ण बात है। पत्रिका के लिए हमारा हर तरह का सहयो आपके साथ है ताकि हिन्दी व साहित्य की यह मुहिम पूरे विश्व में फैले।
सुधीर रंजन, चर्च रोड पणजी, गोवा 

समृद्ध करती रचनाएं
राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर के प्रमुख तथा रचनारत साहित्य सर्जकों की रचनाएं पत्रिका को और पढ़ने वालों को समृध्द करती है। इसके लिए आपको तथ आपकी टीम को बधाई। पिछले अंक में पानू खोलिया की महत्वपूर्ण कहानी 'अन्ना' छपी है खूब!
सनत कुमार, 95 बृजेश्वरी एनेक्स इंदौर (म.प्र.) 

पत्रिका का इंतजार रहता है
अन्य पत्रिकाओं से इतर 'आधारशिला' में कई ऐसी महत्वपूर्ण सामग्री रहती है कि इसके हर अंक का इंतजार रहता है। बाजारवाद व उपभोक्तावादी इस दौर में आज जिस मिशन व संघर्ष से पत्रिाका को जन-जन तक पहुंचा रहे हैं, वह अनुकरणीय है। पत्रिका के स्थाई स्तंभों में भी काफ्का से लेकर शाह जी की डायरी, विष्णु प्रभाकर, बल्लभ डोभाल, सुधा ओम धींगड़ा की कहानियां, चित्राकार हरिपाल त्यागी की कविताएं, वरिष्ठ कथाकार पंकज बिष्ट से बातचीत महत्वपूर्ण है। पत्रिका के हर अंक का इंतजार रहता है।
शंभुनाथ शुक्ल, बोरिंग रोड, पटना (बिहार) 

लोकतंत्र की विडंबना ठीक उजागर की
अपने संपादकीय 'बात की बात' में 'लोकतंत्रा की विडंबना' आपने ठीक उजागर की है। आपकी चिंता सर्वथा उचित है तथापि प्रबुध्दों पर जूं नहीं रेंगेगी। वे तट पर खड़े तमाशा ही देखेंगे। इसका प्रमाण अपेक्षा से कम हुआ वोटिंग प्रतिशत है। 'कोढ़-खाज' भी इसी व्यवस्था पर बल्लभ जी की तिलमिलाहट है। पर्याप्त समीक्षाएं और साहित्यिक समाचार पढ़कर भी अच्छा लगा।
चन्द्रसेन 'विराट', 121, वैकुण्ठधाम कालोनी, आनन्द बाजार के पीछे, इंदौर (म.प्र.)

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