ग़ज़लें : कुंअर बेचैन, आर.के.शर्मा

कुंअर बेचैन
1
तू है तो मेरी ज़िन्दगी इक साज़ लगे है
इन धड़कनों में भी तेरी आवाज़ लगे है
क्यूं वर्ना मेरी सांसें ये घुंघरू सी बजे है
चलने में इनके तेरा ही अंदाज़ लगे है
आकाश को छू आते हैं लफ्जों के परिंदे
लफ्जों में मेरे, तेरी ही परवाज़ लगे है
क्या बा त है पता ही नहीं मुझको अभी तक
मैं जिससे मिला ही नहीं, हमराज़ लगे है
देखा है उसे जब से उसे सोच रहा हूं
मुझको तो मुहब्बत का ये आग़ाज़ लगे है

2
उंगलियों में घूमती माला के दाने आज भी
ढूंढते रहते हैं जी के बहाने आज भी
जिनको लेकर मंदिरों में मन्नतें मांगीं गईं
मां पे हैं मेरे वो कुछ कपड़े पुराने आज भी
वो भले टूटे मगर छोड़ा न सपने देखना
मेरी आंखों में हैं कुछ सपने सुहाने आज भी
एक वो छोटा-सा लेकर, एक वो नन्हीं फिराक
बीते बचपन में गए, गंगा नहाने आज भी
कौन कहता है कि मैं अब भूल बैठा हूं उन्हें
याद हैं सब उससे मिलने के ठिकाने आज भी
यूं नहीं करता, चलो कुछ यूं करूंग, यूं ही करूं
मन को समझाने के हैं कितने बहाने आज भी
गलतियां मेरी बताकर , हां वो पहले की तरह
तुम न माने, तुम न माने, तुम न जाने आज भी
तुम भले ही भूल जाओ पर मुझे तो याद हैं
साथ जो गाए थे इक पिक्चर के गाने आज भी
जांगती आंखों में ही सपने बुला लो ऐ 'कुंअर'
नींद आए या न आए कौन जाने आज भी  q
2 एफ- 41, नेहरूनगर, गाजियाबाद

 

आर.के. शर्मा 'साइल'
1
हर तरफ़ इक धुंध-सी छाने लगी
रहज़नों को रहबरी आने लगी।
क़त्ल करने की अदा तो देखिए
दोस्ती झूठी क़सम खाने लगी।
बिजलियॉ हैं तितलियों के भेस में
दूर कली खिलने से क़तराने लगी।
कोई लाया, कोई कश्ती ले उड़ा
सर-फ़रोशी आज पछताने लगी।
ख़ूब रोने से न बदलेगा निज़ाम
सलतनत को ये अदा आने लगी।
रास्ता शाही सवारी का है ये
नींद 'साइल' को, कहां आने लगी।

2
बहार मेरे भी घर सजाए, कभी तो ऐसी हवा चलेगी
मेरे ख्यालों में गुनगुनाए, कभी तो ऐसी हवा चलेगी।
जहान वाले हमीं से बोले, न चाह करते, न आह भरते
इन्हें भी कोई ग़लत बताए, कभी तो ऐसी हवा चलेगी।
कहीं ये सावन बरस रहा है, कोई घटा को तरस रहा है
सबों को बादल भिगो के जाए, कभी तो ऐसी हवा चलेगी।
न जाने कबसे छुपा हुआ है, ये हुस्न जैसे ख़ुदा हुआ है
उठा के पर्दा नज़र मिलाए, कभी तो ऐसी हवा चलेगी।
मज़ा मिला है जो भूल करके, सज़ा मिली है कबूल करके
जहां में उलफ़त मुकाम पाएं, कभी तो ऐसी हवा चलेगी।
तमाम आलम डरा हुआ है, अंधेरा दिल में भरा हुआ है
ख़ुद अपने हाथों दिया जलाए, कभी तो ऐसी हवा चलेगी।
हज़ार 'साइल' तड़प रहा है, तुम्हारा दिल भी धड़क रहा है
मगर, न दुनिया जले-जलाए, कभी तो ऐसी हवा चलेगी।
प्रीतम पैलेस के पीछे, मन्दिर मार्ग, हिसार रोड, सिरसा (हरियाणा)

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